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श्री सिद्धचक्र विधान
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तुम अनुभवकरि शुद्धोपयोगमन धारा, - यह ज्ञान शरण पायो निश्चय अविकारा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै।
ॐ ह्रीं साधुज्ञानशरणाय नमः अध्यं ॥४४६ ॥ निज आत्म रूप में दृढ़ सरधा तुम पाई,
. थिर रूप सदा निवसों शिववास कराई। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुआत्मशरणाय नमः अयं ॥४४७ ॥ तुम निराकार निरभेद अछेद अनूपा,
'तुम निरावरण निरद्वन्द्व स्वदर्श स्वरूपा। निज़रूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
___मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै।॥ ... ॐ ह्रीं साधुदर्शनस्वरूपाय नमः अयं ॥४४८ ॥ तुम परम पूज्य परमेश परमपद पाया,
- हम शरण गही पूर्णं नित मन-वच-काया। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
__ मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुपरमात्मशरणाय नमः अयं ।।४४९॥ तुम मन इन्द्री व्यापार जीत सु अभीता,
- हम शरण गही मनु आज कर्म रिपु जीता।