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श्री सिद्धचक्र विधान
राग विरोध जयो शिवगामी, आत्म अनातम अन्तरजामी। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमजिनाय नमः अयं ॥४३९॥ भेद बिना गुण भेद धरो हो, सांख्य कुवादिक पक्ष हरो हो। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
___ ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमगुणसम्पन्नाय नमः अयं ॥४४० ॥ साधत आतम पौरुष पाई, उत्तम पुरुष कहो जग ताई। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै।
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमपुरुषाय नमः अर्घ्यं ॥४४१॥ . साधु समान न दीनदयाला, शरम गहै सुख होत विशाला। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
. ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमशरणाय नमः अर्घ्यं ॥४४२॥ जे जग साधू शरण गही है, ते शिव आनन्द लब्धि लही है। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमगुणशरणाय नमः अयं ॥४४३॥ साधुन के गुण द्रव्य चितारे; होत महासुख शरण उभारे। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ॐ ह्रीं साधुगुणद्रव्यशरणाय नमः अर्घ्यं ॥४४४ ॥
लावनी छन्द तुम चितवत वा अवलोकत वा सरधानी,
इम शरण गहै पावै निश्चय शिवरानी। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै। - ॐ ह्रीं साधुदर्शनशरणाय नमः अर्घ्यं ।।४४५ ॥