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श्री सिद्धचक्र विधान
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देखन जानन भाव धरो हो, उत्तम लोक के हेतु गहे हो। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
____ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमज्ञानदर्शनाय नमः अयं ॥४३१॥ जाकर लोक शिखरपद धारा, उत्तम धर्म कहो जग सारा। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
- ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमधर्माय नमः अर्घ्यं ॥४३२॥ धर्म स्वरूप निजातम माँही, उत्तम लोक विर्षे ठहराई। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
___ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमधर्मस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥४३३॥ अन्य सहाय न चाहत जाको, उत्तम लोक कहै बल ताको। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै।
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमवीर्याय नमः अयं ॥४३४॥ उत्तम वीर्य संरूप निहारा, साधन मोक्ष कियो अनिवारा। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
____ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमवीर्यस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥४३५॥ पूरणआत्मकला परकाशी, लोकवि अतिशयअविनाशी। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
____ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमअतिशयाय नमः अयं ॥४३६ ॥ राग विरोध न चेतन माही, ब्रह्म कहो जग उत्तम ताही। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
____ ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमब्रह्मज्ञानाय नमः अयं ॥४३७॥ ज्ञान सरूप अकम्प अडोला, पूरण ब्रह्म प्रकाश अटोला। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमब्रह्मज्ञानस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ।।४३८॥