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श्री सिद्धचक्र विधान
तीन हि लोक लखे सब जोई, आप समान न उत्तम कोई। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
___ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमाय नमः अर्घ्यं ॥४२३॥ लोक सभी विधि बन्धन माहीं, तुम सम रूप धरे ते नाहीं। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमगुणाय नमः अर्घ्यं ॥४२४॥ लोकन के गुण पाप कलेशा, उत्तम रूप नहीं तुम जैसा। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै।
___ ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमगुणस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥४२५॥ . लोक अलोक निहारक नामी, उत्तम द्रव्य तुम्हीं अभिरामी। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमद्रव्याय नमः अर्घ्यं ॥४२६॥ लो सभी षद्रव्य रचाया, उत्तम द्रव्य तुम्ही हम पाया। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमद्रव्यस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥४२७॥ ज्ञानमई चित उत्तम सोहै, ऐसो लोक विर्षे अरु को है। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमज्ञानाय नमः अर्घ्यं ॥४२८॥ ज्ञान स्वरूप सुभाव तिहारा, उत्तम लोक कहै इम सारा। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमज्ञानस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥४२९॥ देखन में कछु आड न आवै, लोक तभी सब उत्तम गावें। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥
ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमज्ञानदर्शनाय नमः अर्घ्यं ॥४३०॥
साधु भय
ही साधुलोका
उत्त