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श्री सिद्धचक्र विधान
हो वित्तसार प्रासुक दरब, सरव अंग मन को हरै। सो महाभाग आनन्द सहित, जो जिनेन्द्र अर्चा करै॥५॥
यन्त्र स्थापना - दोहा सुर मुनि मन आनन्द कर, ज्ञान सुधारस धार। सिद्धचक्र सो थापहूँ, विधि-दव-जल उनहार॥६॥ अडिल्ल-अर्ह शब्द प्रसिद्ध अर्द्ध मात्रिक कहा।
अकारादि स्वर मण्डित अति शोभा लहा॥ अति पवित्र अष्टांग अर्घ करि लायके ।
पूरवदिशि पूजो अष्टांग नमायके ॥७॥ ॐ ह्रीं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः पूर्वदिशि अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः पूर्वदिशि अयं निर्वपामीति स्वाहा। सोरठा- वर्ण कवर्ग महान, अष्ट पूर्वविधि अर्घ ले।
भक्ति भाव उर ठान, पूजों हो आग्नेय दिशि॥८॥ ॐ ह्रीं अहँ क ख ग घ ड़ अनाहतपराक्रमाय सिद्धाधिपतये आग्नेयदिशि अयं निर्वपामीति स्वाहा।। वर्ण चवर्ग प्रसिद्ध, वसुविधि अर्घ उतारिके। मिलि है वसुविधि ऋद्धि, दक्षिण दिशि पूजा करौं ॥९॥ ____ॐ ह्रीं अहँ च छ ज झ अ अनाहतपराक्रमाय सिद्धाधिपतये दक्षिणदिशि अयं निर्वपामीति स्वाहा। वर्ण टवर्ग प्रशस्त, जलफलादि शुभ अर्घ ले। पाऊँ सब विधि स्वस्ति, नैऋत्य दिशि अळ करों॥१०॥ ____ॐ ह्रीं अर्ह ट ठ ड ढ ण अनाहतपराक्रमाय सिद्धाधिपतये नैऋत्यदिशि अयं निर्वपामीति स्वाहा।