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॥ ॐ नमः सिद्धेभ्य॥
श्री सिद्धचक्र विधान
कविवर पं. सन्तलालजी कृत
मंगलाचरण
दोहा जिनाधीश शिवईश नमि, सहसगुणित विस्तार। सिद्धचक्र पूजा रचों, शुद्ध त्रियोग सम्भार ॥१॥ नित्याश्रित धनपति सुधी शीलादिक गुण खान। जिनपद अन्बुज भ्रमर मन, सो प्रशस्त यजमान॥२॥ देश काल विधि निपुणमति, निर्मल भाव उदार। मधुर बैन नयना सुधर, सो याजक निराधार ॥३॥ रत्नत्रयमण्डित महा, विषय कषाय नहिं लेश। संशय हरण सुहित करण, करत सुगुरु उपदेश॥४॥
.. छप्पय छन्द निर्मल मण्डप भूमि दरव-मंगल करि सोहत। । सुरभि सरस शुभ पुष्प-जाल मण्डित मन मोहत॥ • यथायोग्य सुन्दर मनोज्ञ, चित्राम अनूपा।
दीरघ मोल सुडोल, वसन झखझोल सरूपा॥