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श्री सिद्धचक्र विधान
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पराश्रित भाव विनशाया, सुथिर निजरूप दर्शाया। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्रीं पाठकंतपसाचाराय नमः अयं ॥३५२॥ मुक्तपद दैन अनिवारी, सर्व बुध चरण आचारी। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्रीं पाठकरत्नत्रयाय नमः अयं ॥३५३ ॥ शुद्ध रत्नत्रय धारी, निजातम रूप अविकारी। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। .. ॐ ह्रीं पाठकरत्नत्रयसहायाय नमः अध्यं ॥३५४॥ . धौव्य पञ्चमगति पाई, जन्म फुनि मरण छुटकाई। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
. ॐ ह्रीं पाठकध्रुवसंसाराय नमः अध्यं ॥३५५॥ अनूपम रूप अधिकाई, असाधारण स्वपद पाई। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
. ॐ ह्रीं पाठकएकत्वस्वरूपाय नमः अयं ॥३५६ ॥ आन तुम सम न गुण होई, कहो एकत्व सोई। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्री पाठकएकत्वगुणाय नमः अध्यं ॥३५७॥ निजानन्द पूर्ण पद पाया, सोई परमात्म कहलाया। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्री पाठकएकत्वपरमात्मने नमः अयं ॥३५८॥ उच्चगत मोक्ष का दाता, एक निज-धर्म विख्याता। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्रीं पाठकएकत्वधर्माय नमः अयं ॥३५९ ॥