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श्री सिद्धचक्र विधान
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तिहुँ लोकनाथ तिहुँ लोकपूज, शरणागत प्रतिपालन अदूज। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
ह्रीं सूरित्रिलोकमण्डलशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२४८॥ अव्यय अपूर्व सामर्थ युक्त, संसारातीत विमोह मुक्त ॥ शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥ ॐ ह्रीं सूरिऋद्धिमण्डलशरणाय नमः अयं ॥२४९॥
त्रोटक छन्द जिन रूप अनूप लखें सुख हो, जग में यह मन्त्र महान कहो। धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूंशिववास करैं सुखदा॥
ॐ ह्रीं सूरिमन्त्रस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥२५०॥ जिम नागदेववशमन्त्र विधि, भववासहरणतुमनाम निधि। धरि भक्ति हिये गणराजसदा, प्रणमूं शिववास करै सुखदा॥ ..... ॐ ह्रीं सूरिमन्त्रगुणाय नमः अयं ॥२५१॥ । जगमोहित जीव न पावत हैं, यह मन्त्र सु धर्म कहावत हैं। धरिभक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूंशिववास करैं सुखदा॥
__ॐ ह्रीं सूरिधर्माय नमः अर्घ्यं ॥२५२॥ चिदरूप चिदातम भाव धरें, गुण सार यही अविरुद्ध वरें। धरिभक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूंशिववास करैं सुखदा॥ . ॐ ह्रीं सूरिचैतन्यस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥२५३॥ अविकार चिदातम आनन्द हो, परमातम हो परमानन्द हो। धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूं शिववासक सुखदा॥
ॐ ह्रीं सूरिचिदानन्दाय नमः अर्घ्यं ॥२५४॥
जगमोहित जीवराजसदा, प्रण अध्य॥२५२