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श्री सिद्धचक्र विधान
निज ज्ञान प्रमाण प्रकाश करें, सुख रूप निराकुलता सु धेरै । धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूं शिववास करें सुखदा ॥ ॐ ह्रीं सूरिज्ञानानन्दाय नमः अर्घ्यं ॥ २५५ ॥
धरि योग महाशम भाव गहैं, सुख राशि महा शिववास लहैं । धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूं शिववास करें सुखदा ॥ ॐ ह्रीं सूरिशमभावाय नमः अर्घ्यं ॥ २५६ ॥
समभाव महा गुण धारत हैं, निज आनन्द भाव निहारत हैं। धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूं शिववास करें सुखदा । ॐ ह्रीं सूरितपोगुणानन्दाय नमः अर्घ्यं ॥ २५७ ॥ शिवसाधनकोविधिनाशकहा, विधिनाशनकोतपकर्णमहा । धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूं शिववास करें सुखदा ॥ ॐ ह्रीं सूरितपोगुणस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥ २५८ ॥
निज आत्म विषै नित मगन रहैं, जग के सुख मूल न भूलि चहैं। धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूं शिववास करें सुखदा ॥ ॐ ह्रीं सूरिहंसाय नमः अर्घ्यं ॥ २५९ ॥
वनवास उदास सदा जगतैं, पर आस न खास विलास रतैं । धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूं शिववास करैं सुखदा ॥ ॐ ह्रीं सूरिहंसगुणाय नमः अर्घ्यं ॥ २६० ॥ निज नाम महागुण मन्त्र धेरै छिन मात्र जपे भवि आश वरै । धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूं शिववास करें सुखदा ॥ ॐ ह्रीं सूरिमन्त्रगुणानन्दाय नमः अर्घ्यं ॥ २६१ ॥ परमोत्तम सिद्ध पर्याय कहा, अति शुद्ध प्रसिद्ध सुखात्म महा । धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूं शिववास करें सुखदा ॥ ॐ ह्रीं सूरिसिद्धानन्दाय नमः अर्घ्यं ॥ २६२ ॥
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