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श्री सिद्धचक्र विधान
एकाग्र चित्त चिन्ता निरोध, पावै अबाध शिव आत्म सोध। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
ॐ ह्रीं सूरिध्यानशरणाय नमः अयं ॥२४०॥ केवलज्ञानादि विभूति पाई, है शुद्ध निरञ्जन पद सुखाइ। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
ॐ ह्रीं सूरिसिद्धशरणाय नमः अयं ॥२४१॥ .... तिहुँ लोकनाथ तिहुँ लोकमाहिं,यानमदूजोसुखदायनाहिं। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
ॐ ह्रीं सूरित्रिलोकशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२४२॥ आगत अतीत अरु वर्तमान, तिहुँ काल भव्य पावै निर्वाण। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
_. ॐ ह्रीं सूरित्रिकालशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२४३॥ मधिअधोऊर्द्धतिहुँजगत्माहि,सबजीवनसुखकरऔरनाहिं। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
ॐ ह्रीं सूरित्रिजगन्मङ्गलाय नमः अर्घ्यं ॥२४४॥ तिहुँ लोकमाहिं सुखकार आप, सत्यारथ मंगल हरण पाप। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
ॐ ह्रीं सूरित्रिलोकमङ्गलशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२४५॥ उत्तममंगल परमार्थरूप, जगदुःखनासे शिवसुखस्वरूप। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
ॐ ह्रीं सूरित्रिजगन्मङ्गलशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२४६॥ शरणागतदुःखनाशनमहान,तिहुँजगहितकारणसुखनिधान। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
ॐ ह्रीं सूरित्रिजगन्मङ्गलशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२४७ ॥