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श्री सिद्धचक्र विधान
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अन्य समस्त विकल्प तजि केवल निजपद लीन, .
पूरण ज्ञान स्वरूप यह पायो सूरी सुधीन।
ॐ ह्रीं सूरिज्ञानस्वरूपाय नमः अयं ॥२३३॥ सुखाभास इन्द्रीजनित त्यागी सूरि महंत,
पूरण सुख स्वाधीन निज साध्य भये सुखवंत। ____ ॐ ह्रीं सूरिसुखस्वरूपाय नमः अयं ॥२३४॥ अनेकांत तत्त्वार्थ के ज्ञाता सूरि महान,
निरावर्ण निजरूप लखि पायो पद निरवाण।
ॐ ह्रीं सूरिदर्शनस्वरूपाय नमः अयं ॥२३५ ॥ मोहादिक रिपु नाशिके सूरि महासामर्थ,
शिव भामिन भरतार नित रमै साधि निज अर्थ। ॐ ह्रीं सूरिवीर्यस्वरूपाय नमः अयं ॥२३६ ॥
पद्धड़ी छन्द निज निज आतम निष्पाप कीन, ते सन्त करें पर पाप छीन। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
ॐ ह्रीं सूरिमङ्गलशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२३७॥ रत्नत्रय जीव सुभाव भाय, भवि पतित उधारण हो सहाय। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
.. ॐ हीं सूरिधर्मशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२३८॥ तपकरज्यों कञ्चनअग्निजोग, हैशुद्धनिजातम पदमनोग। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥
ॐ ह्रीं सूरितपशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२३९॥