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श्री सिद्धचक्र विधान
बाह्य छत्तीस अन्तर अभेदात्मा,
आप थिर रूप है सूरि परमात्मा। सूरि सिद्धान्त के पारगामी भये,
मैं नमूं जोरकर. मोक्षधामी भये ॥ ___ ॐ ह्रीं सूरिगुणशरणाय नमः अध्यं ॥२२८ ॥ ज्ञान उपयोग में स्वस्थिता शुद्धता,
पूर्ण चारित्रता पूर्ण ही बुद्धता। सूरि सिद्धान्त के पारगामी भये,
मैं नमूं जोरकर मोक्षधामी भये॥ - ॐ ह्रीं सूरिधर्मगुणशरणाय नमः अध्यं ॥२२९॥ शरण दुःख हरण पर आप ही शर्ण हैं,
. आपने कार्य में आप ही कर्ण हैं। सूरि सिद्धान्त के पारगामी भये,
. मैं नमूं जोरकर मोक्षधामी भये ॥ . ॐ ह्रीं सूरिशरणाय नमः अयं ॥२३०॥
दोहा - ज्यों कंचन बिन कालिमा उज्जल रूप सुहाय,
त्योंही कर्म-कलङ्क बिन निज स्वरूप दरशाय।
ॐ हीं सूरिस्वरूपशरणाय नमः अध्यं ॥२३१॥ भेदाभेद सुनय थकी एकहि धर्म विचार, . पायो सूरि सुबोध करि भवदधि करि उद्धार।
ॐ हीं सूरिधर्मस्वरूपशरणाय नमः अयं ॥२३२॥