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श्री सिद्धचक्र विधान
निजस्वरूप थितिकरण हरणविधि चार हैं,
परमारथ आचार्य सिद्ध सुखकार हैं।
ॐ ह्रीं सूरिदर्शनगुणेभ्यो नमः अध्यं ॥२०६ ॥ अतुल अकम्प अखेद शुद्धपरिणति धरै,.
जगतरूप व्यापार न इक छिन आदरै। निजस्वरूप थितिकरण हरणविधि चार हैं,
परमारथ आचार्य सिद्ध सुखकार हैं।
ॐ ह्रीं सूरिवीर्यगुणेभ्यो नमः अयं ॥२०७॥ षट्त्रिंशति गुण सूरि मोक्ष-फल पाइयो, ..
तातें हम इन गुण करही जश गाइयो। निजस्वरूप थितिकरण हरणविधि चार हैं,
परमारथ आचार्य सिद्ध सुखकार हैं।
ॐ ह्रीं सूरिषट्त्रिंशत्गुणेभ्यो नमः अध्यं ॥२०८॥ पंचाचार आचार साध शिवपद लियो,
वास्तव में ये गुण निजमें परगट कियो। निजस्वरूप थितिकरण हरणविधि चार हैं,
परमारथ आचार्य सिद्ध सुखकार हैं।
ॐ ह्रीं सूरिपश्चाचारगुणेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥२०९॥ गुण समुदाय सरूप द्रव्य आतम महा,
__परसों भिन्न अभेद निजातम पद लहा। निजस्वरूप थितिकरण हरणविधि चार हैं,
परमारथ आचार्य सिद्ध सुखकार हैं। ॐ हीं सूरिद्रव्यगुणेभ्यो नमः अयं ॥२१०॥