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श्री सिद्धचक्र विधान
सुभाव निजातम अन्तर लीन, विभाव परातम आपद कीन। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ,धरोंचरणांबुजकोनिजमाथ॥
ॐ ह्रीं सिद्धअन्तराकाराय नमः अयं ॥१९६॥ जहाँ लग द्वेष प्रवेश न होय, तहाँ लग सार रसायन होय। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ, धरोंचरणांबुजकोनिजमाथ॥
। ॐ ह्रीं सिद्धसाररसाय नमः अयं ॥१९७॥ . जिसो निरलेपहुए विषतुंब्य, तिसोजगअग्र निराश्रय लुंब्य। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ,धरोंचरणांबुजकोनिजमाथ॥
ॐ ह्रीं सिद्धशिखरमण्डनाय नमः अर्घ्यं ॥१९८॥ तिहूँजगशीशबिराजित नित्य, शिरोमणिसर्वसमाजअनित्य। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ, धरोंचरणांबुजको निजमाथ॥
ॐ ह्रीं सिद्धत्रिलोकाग्रनिवासिने नमः अर्घ्यं ॥१९९॥ अकाय अरूप अलक्ष अवेद, निजातम लीन सदा अविछेद। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ,धरोंचरणांबुजकोनिजमाथ॥ ॐ ह्रीं सिद्धस्वरूपगुप्तेभ्यो नमः अयं ॥२०० ॥
___ अडिल्ल छन्द ऋषभ आदि चित धारी प्रथम दीक्षा धरी,
केवलज्ञान उपाय धर्म विधि उच्चरी। निजस्वरूप थितिकरण हरणविधि चार हैं,
परमारथ आचार्य सिद्ध सुखकार हैं। ॐ ह्रीं सूरिभ्यो नमः अर्घ्यं ॥२०१॥