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श्री सिद्धचक्र विधान
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चेतन रूप प्रदेश बिराजै, आकृति रूप अलिंग सु छाजै। सिद्ध समूह नमूं शिरनाई, पाप कलाप सबै खिर जाई॥
ॐ हीं सिद्धसाकारनिराकाराय नमः अध्यं ॥१८९॥ नाहि गहैं पर आश्रित जानो, सो अवलम्ब बिना पद मानो। सिद्ध समूह नमूं शिरनाई, पाप कलाप सबै खिर जाई॥
ॐ ह्रीं सिद्धनिरावलम्बाय नमः अध्यं ॥१९॥ राग विषाद बसै नहिं जामें, योग वियोग भोग नहिं तामें। सिद्ध समूह नमूं शिरनाई, पाप कलाप सबै खिर जाई॥
ॐ ह्रीं सिद्धनिष्कलङ्काय नमः अयं ॥१९१॥ ज्ञान प्रभाव प्रकाश भयो है, कर्म समूह विनाश भयो है। सिद्ध समूह नमूं शिरनाई, पाप कलाप सबै खिर जाई॥
. ॐ ह्रीं सिद्धतेजःसम्पन्नाय नमः अयं ॥१९२॥ आतम लाभ निजाश्रित पाया, द्वैत विभाव समूह नसाया। सिद्ध समूह नमूं शिरनाई, पाप कलाप सबै खिर जाई॥ ॐ ह्रीं सिद्धआत्मसम्पन्नाय नमः अय॑ ॥१९३॥
मोतियादाम छन्द चहूँ गति काय स्वरूप प्रत्यक्ष, शिवालय वासअनूप अलक्ष। भजोमनआनन्दसोंशिवनाथ,धरोंचरणांबुजकोनिजमाथ॥
ॐ ह्रीं सिद्धगर्भवासाय नमः अध्यं ॥१९४॥ निजानन्द श्रीयुत ज्ञान अथाह, सुशोभित तृप्त भयो सुखपाय। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ,धरोंचरणांबुजको निजमाथ।
ॐ ह्रीं सिद्धलक्ष्मीसन्तृप्तकाय नमः अयं ॥१९५ ॥