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________________ १४४] श्री सिद्धचक्र विधान जबलग परजाया भेद नाना धराया, इक शिवपद माहीं भेद आभास नाहीं। मन-वच-तन लाई पूजहों भक्ति भाई, भवि भव भय चूरं शाश्वतं सुक्ख पूरं॥ ॐ ह्रीं सिद्धअभेदगुणाय नमः अध्यं ॥१८४॥ अनुपम गुणधारी लोक संभाव टारी, सुरनर मुनि ध्यावें सो नहीं पार पावै। मन-वच-तन लाई पूजहों भक्ति भाई, __ भवि भव भय चूरं शाश्वतं सुक्ख पूरं॥ ॐ ह्रीं सिद्धअनुपमगुणाय नमः अर्घ्यं ॥१८५॥ . जिस अनुभव सरसै धार आनंद बरसै, अनुपम रस सोई स्वाद जासों न कोई। मन-वच-तन लाई पूजहों भक्ति भाई, . भवि भव भय चूरं शाश्वतं सुक्ख पूरं॥ . ॐ ह्रीं सिद्धअमृततत्वाय नमः अर्घ्यं ॥१८६॥ सब श्रुत विस्तारा जास माहीं उजारा, यह निजपद जानो आत्म संभाव मानो। मन-वच-तन लाई पूजहों भक्ति भाई, भवि भव भय चूरं शाश्वतं सुक्ख पूरं॥ ॐ ह्रीं सिद्धश्रुतप्राप्ताय नमः अर्घ्यं ॥१८७॥ दोधक छन्द जीव अजीव सबै प्रतिभासी, केवल जोति लहो तम नाशी। सिद्ध समूह नमूं शिरनाई, पाप कलाप सबै खिर जाई॥ ॐ ह्रीं सिद्धकेवलप्राप्ताय नमः अर्घ्यं ॥१८८॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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