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श्री सिद्धचक्र विधान
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मंगल अरहन्तं अष्टम भन्तं, सिद्ध अष्ट गुण भाश। ये ही बिलसा, अन्य न पावै, असाधारण परकाश॥हेजग.
. ॐ ह्रीं सिद्धमंगलअष्टप्रकाशकेभ्यो नमः अयं ॥१५१ ॥ निर आकुलताई सुख अधिकाई, परम शुद्ध परिणाम। संसार निवारण बन्ध विडारन, यही धर्म सुखधाम ॥ हेजग. ॐ ह्रीं सिद्धमंगलधर्मेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१५२ ॥
चूलिका छन्द तीन काल तिहुँ लोक में, तुम गुण और न माहिं लखाने। लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने ॥
ॐ ह्रीं सिद्धलोकोत्तमगुणेभ्यो नमः अयं ॥१५३॥ *लोकत्रय शिर छत्र मणि, लोकत्रय वर पूज्य प्रधाने। लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने॥ .. ॐ ह्रीं सिद्धलोकोत्तमेभ्यो नमः अयं ॥१५४॥ अमल अनूपम तेजधन, निरावरण निजरूप प्रमाने। लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने ॥
ॐ ह्रीं सिद्धलोकोत्तमेभ्यो नमः अयं ॥१५५॥ लोकालोक प्रकाश कर, लोकातीत प्रत्यक्ष प्रमाने । लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने॥
ॐ ह्रीं सिद्धलोकोत्तमणानाय नमः अर्घ्यं ॥१५६ ॥ सकल दर्शनावरण बिन, पूरन-दरसन जोत उगाने । लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने॥
ॐ ह्रीं सिद्धलोकोत्तमदर्शनाय नमः अर्घ्यं ॥१५७॥ * 'लोकत्रयशिर चत्रमणि, लोकत्रय वर पूज्य प्रधाने' ऐसा पाठ "क' प्रतिमें है।