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श्री सिद्धचक्र विधान
अतुल अतीन्द्रिय वीर्यकर, भोगे नित शिवनारी अंघाने। लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने । ॐ ह्रीं सिद्धलोकोत्तमदर्शनाय नमः अयं ॥१५८॥
त्रोटक छन्द बिन कारण ही सबके मितु हो, सर्वोत्तम लोकवि हितु हो। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं।
ॐ ह्रीं सिद्धलोकोत्तमशरणाय नमः अयं ॥१५९॥ तुमरूपअनुपमध्यान किये, निजरूप दिखावत स्वच्छ हिये। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं।
___ॐ ह्रीं सिद्धस्वरूपशरणाय नमः अर्घ्यं ॥१६०॥ निरभेद अछेद विकाशित हैं,सबलोकअलोक विभासित हैं। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं।
ॐ ह्रीं सिद्धदर्शनशरणाय नमः अयं ॥१६१॥ निरबाध अगाध प्रकाशमई, निरद्वन्द अबंध अभय अजई। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं।
ॐ ह्रीं सिद्धज्ञानशरणाय नमः अयं ॥१६२॥ हित कारण तारण तरण कहै, अप्रमाद प्रमाद प्रकाशन है। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं।
____ॐ ह्रीं सिद्धवीर्यशरणाय नमः अयं ॥१६३ ॥' अविरुद्ध विशुद्धप्रसिद्धमहा, निजआतम-तत्त्वप्रबोधलहा। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं।
___ ॐ ह्रीं सिद्धसम्यक्त्वशरणाय नमः अर्घ्यं ॥१६४॥