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श्री सिद्धचक्र विधान
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भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा,
यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा॥
ॐ ह्रीं त्रिकालसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥१३७॥ तिहुँ लोक शुद्ध सम्यक्त धारो,
महा भार संजम धरै हैं अवारी। भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा,
यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा॥ ॐ ह्रीं त्रिलोकसिद्धेभ्यो नमः अध्यं ॥१३८॥ .
मरहठा छन्द तिहुँ लोक निहारा, सब दुखकारा पापरूप संसार। ताको परिहारा सुलभ सुखारा, भये सिद्ध अविकार॥ हे जगत्रय नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार। मैं नमूं त्रिकाल हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार॥
ॐ ह्रीं सिद्धमंगलेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१३९॥ तिहुँ कर्म कालमा लगी जालमा, करै रूप दुखदाय। तुम ताको नाशो स्वयं प्रकाशो, स्वातम रूप सुभाय॥ हेजग.
ॐ ह्रीं सिद्धमंगलस्वरूपेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१४०॥ तिहुँ जग के प्रानी सब अज्ञानी, फँसे मोह जञ्जाल। हो तिहुँ जगत्राता पूरण ज्ञाता, तुम ही एक खुशहाल॥हेजग.
ॐ ह्रीं सिद्धमंगलज्ञानेभ्यो नमः अयं ॥१४१॥ यह मोह अन्धेरी छई घनेरी, प्रबल पटल रहो छाय। तुमताहि उधारोसकल निहारो, युगपत् आनन्ददाय॥हे जग.
ॐ ह्रीं सिद्धमंगलदर्शनेभ्यो नमः अयं ॥१४२॥