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१३६]
श्री सिद्धचक्र विधान
खपायो प्रथम सात प्रकृति विमोहा,
गहो शुद्ध श्रेणी क्षयो कर्म लोहा। भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा,
यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा॥
ॐ ह्रीं क्षपकश्रेणीसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥१३३॥ समय एक में एक वासौ अनन्ता,
धरो आठ तापं यही भेद अन्ता॥ भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा,
यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा॥ ___ॐ ह्रीं एकसमयसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥१३४॥ किसी देश में वा किसी काल माहीं,
गिनें दो समय में तथा अन्तराई। भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा,
यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा॥
ह्रीं द्विसमयसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१३५॥ समय एक दो तीन धाराप्रवाही,
कियो कर्म छय अन्तराय होय नाहीं। भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा,
यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा॥
ॐ ह्रीं त्रिसमयसिद्धेभ्यो नमः अध्यं ॥१३६॥ हुवे हैं सु होंगे सु हो हैं अबारी,
त्रिकालं सदा मोक्ष पन्था विहारी।