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श्री सिद्धचक्र विधान
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अन्तर द्वीप मही जहाँ, देवन के अभिराम है। सिद्ध भये तिहुँ योगतैं, तिनके पद परणाम है ॥ ॐ ह्रीं द्वीपसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥ १२८ ॥
देव गये ले सिन्धु जब, कर्म छ्यो तिह ठाम है। सिद्ध भये तिहुँ योगतैं, तिनके पद परणाम है ॥ ॐ ह्रीं उदधिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥ १२९ ॥
भुजङ्गप्रयात छन्द
धरैं जोग आसन गहैं शुद्ध ताई,
न हो खेद ध्यानाग्नि सों कर्म छाई । भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा,
यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा ॥ ॐ ह्रीं स्वस्थित्यासनसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१३०॥ महा शांति मुद्रा पलौथी लगाये,
कियो कर्म को नाश ज्ञानी कहाये । भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा,
यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा ॥ ॐ ह्रीं पर्यङ्कासनसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥ १३१ ॥ लहै आदि को संहनन पुरुष देही,
लखायो परारम्भ में भाव ते ही । भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा,
यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा ॥ ॐ ह्रीं पुरूषवेदसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥ १३२ ॥