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श्री सिद्धचक्र विधान
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संसार रूप सब विघनटार, मंगल गुण श्री जिनमुक्तिकार। हमशरणगही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंदपाय॥ _ ॐ ह्रीं अरहन्मंगलगुणशरणाय नमः अर्घ्यं ॥७२॥ छयउपशम ज्ञानी विघन रूप, ता बिन जिन ज्ञानी शिवसुरूप। हमशरणगही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंदपाय॥
ॐ ह्रीं अरहन्मंगलज्ञानशरणाय नमः अर्घ्यं ॥७३॥ अरहन्तदर्श मंगल स्वरूप, तासोंदरशै शिव-सुख अनूप । हमशरणगहीमन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंदपाय॥
... ॐ ह्रीं अरहन्मंगलदर्शनशरणाय नमः अर्घ्यं ॥७४॥ अरहन्त बोध है मंगलीक, शिवमारग प्रति वरते अलोक। हमशरणगहीमन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंदपाय ॥
ॐ ह्रीं अरहन्मंगलबोधशरणाय नमः अर्घ्यं ।।७५ ॥ निज ज्ञानानन्द प्रवाह धार, वरते अखण्ड अव्यय अपार । हमशरणगही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय॥
ॐ ह्रीं अरहन्मंगलआत्मबोधशरणाय नमः अर्घ्यं ॥७६ ॥ जाबिन तिहुँलोकन औरमान, भव सिन्धुतरणतारण महान। हमशरणगही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंदपाय॥
ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमशरणाय नमः अर्घ्यं ॥७७॥ स्वाभाविक भव्यन प्रति दयाल, विच्छेदकरणसंसार जाल। हमशरणगही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय॥
ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमगुणशरणाय नमः अर्घ्यं ॥७८॥ तुम बिनसमरथ तिहुँलोकमाहिं, भवसिन्धुउतारणऔरनाहिं। हमशरणंगहीमन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय॥
____ ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमवीर्यशरणाय नमः अयं ॥७९॥