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श्री सिद्धचक्र विधान
अनुमानादिक साधत विज्ञान, अरहन्त मती प्रत्यक्ष जान । हम शरण गही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय ॥ ॐ ह्रीं अरहदभिनिबोधकायशरणाय नमः अर्घ्यं ॥ ६४ ॥ जिन भाषित श्रुत सुनि भव्य जीव, पायो शिव अविनाशी सदीव । हम शरण गही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय ॥ ॐ ह्रीं अरहश्रुतशरणाय नमः अर्घ्यं ॥६५ ॥ प्रतिपक्षी सब जीते कषाय, पायो अवधी शिवसुख कराय । हम शरण गही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय ॥ ॐ ह्रीं अरहद्वधिशरणाय नमः अर्घ्यं ॥ ६६ ॥ मुनि लहैं गहैं परिणाम श्वेत, जिन मनपर्यय शिववास देत । हम शरण गही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय ॥ ॐ ह्रीं अरहन्मन:पर्ययशरणाय नमः अर्घ्यं ॥६७॥ आवरण रहित प्रत्यक्ष ज्ञान, शिवरूप केवली जिन सुजान । हम शरण गही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय ॥ ॐ ह्रीं अरहत्केवलशरणाय नमः अर्घ्यं ॥ ६८ ॥ मुनि केवलज्ञानी जिन अराध, पावैं शिव-सुख निश्चय अबाध । हम शरण गही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय ॥ ॐ ह्रीं अरहत्केवलशरणस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥६९ ॥ शिव-सुखदायकजिन आत्मज्ञान, सोकेवलपावैजिनमहान । हम शरण गही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय ॥ ॐ ह्रीं अरहत्केवलधर्मशरणाय नमः अर्घ्यं ॥ ७० ॥
यह केवल गुण आतम स्वभाव, अरहन्तन प्रति शिव - सुख उपाव । हम शरण गही मन-वचन-काय, नित नमैं सन्त आनंद पाय ॥ ॐ ह्रीं अरहकेवलगुणशरणाय नमः अर्घ्यं ॥७१॥