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श्री सिद्धचक्र विधान
तीन लोक में सार सु श्रीअरहंत स्वयम्भू ज्ञानी। नमूं सदा शिवरूप आप हो भविजन प्रति सुखदानी॥
ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलज्ञानाय नमः अर्घ्यं ॥४८॥ सर्वोत्तम तिहुँ लोक प्रकाशित, केवलज्ञान स्वरूपी। सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद सार अनूपी॥ ___ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलज्ञानस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥४९॥ ज्ञान तरंग अभंगं बहै, लोकोत्तम सार अरूपी। सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद धार अनूपी॥ ___ ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलज्ञानस्वरूपाय नमः अयं ॥५०॥ सहित असाधारण गुण पर्याय, केवलज्ञान सरूपी॥ सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद धार अनूपी॥
ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलद्रव्याय नमः अर्घ्यं ॥५१॥ जगजिय सर्व अशुद्ध कहो, इक केवल शुद्ध सरूपी। सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद धार अनूपी॥
ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलाय नमः अर्घ्यं ॥५२॥ विविध कुरूप सर्व जगवासी, केवल स्वयं सरूपी। सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद धार अनूपी॥
ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥५३॥ हीनाधिक धिक धिक जग प्राणी, धन्य एक ध्रुवरूपी॥ सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद धार अनूपी॥
ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमध्रुवभावाय नमः अर्घ्यं ॥५४॥
टोहा
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संसारिन के भाव सब, बन्ध हेत वरणाय। मुक्तिरूप अरहंत के, भाव नमूं सुखदाय॥
ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमभावाय नमः अर्घ्यं ॥५५॥