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श्री सिद्धचक्र विधान
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चक्षु आदि सब विघन विदूरित, क्षायक मंगलकारी । यह अर्हन्त दर्श पायो मैं नमूं भये शिव कारी ॥ ॐ ह्रीं अरहन्मंगलादर्शनाय नमः अर्घ्यं ॥२४॥ निजपर संशय आदि पाय बिन, निरावरण विकसानो । मंगलमय अरहन्त ज्ञान है, बन्दू शिव सुख थानो ॥ ॐ ह्रीं अरहन्मंगलज्ञानाय नमः अर्घ्यं ॥ २५ ॥
परकृत जरा आदि सङ्कट बिन, अतुल बली अर्हन्ता । नमूं सदा शिवनारी के संग, सुखसो के लि करन्ता ॥ ॐ ह्रीं अरहन्मंगलवीर्याय नमः अर्घ्यं ॥ २६ ॥ पापरूप एकान्त पक्ष बिन, सर्व तत्त्व परकाशी । द्वादशांग अरहन्त कहो मैं नमूं भये शिववासी ॥ ॐ ह्रीं अरहन्तमंगलद्वादशांगाय नमः अर्घ्यं ॥२७॥
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बिन प्रतक्ष अनुमान सुबाधित, सुमतिरूप परिणामा । मंगलमय अर्हन्तमती मैं नमूं देउ शिवधामा ॥ ॐ ह्रीं अरहन्मंगलअभिन्नबोधकाय नमः अर्घ्यं ॥ २८ ॥ नय विकलप श्रुत अंग पक्ष के त्यागी हैं भगवन्ता । ज्ञाता दृष्टा वीतराग, विख्यात नमूं अरहन्ता ॥ ॐ ह्रीं अरहन्मंगल श्रुतात्मकजिनाय नमः अर्घ्यं ॥२९॥ मंगलमय सर्वावधि जाकरि, पावै पद अरहन्ता । बन्दूं ज्ञान प्रकाश नाश भव, शिव थल वास करन्ता ॥ ॐ ह्रीं अरहमंगलावधिज्ञानाय नमः अर्घ्यं ॥ ३० ॥ वर्धमान मनपर्यय ज्ञान करि, केवल भानु उगायो । भव्यानि प्रति शुभ मार्ग बतायो, नमूं सिद्ध पद पायो ॥ ॐ ह्रीं अरहन्मंगलमन:पर्ययज्ञानाय नमः अर्घ्यं ॥३१ ॥