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श्री सिद्धचक्र विधान
५१२ गुण सहित नाम अर्घ (अर्द्ध छन्द जोगीरासा) लोकत्रय करि पूज्य प्रधाना, केवल ज्योति प्रकाशी। भव्यन मन तम मोह विनाशक, बन्दूं शिव थल वासी॥
___ॐ ह्रीं अरहन्ताय नमः अयं ॥१॥ सुरनर मुनिजन कुमुदन मोदन, पूरण चन्द्र समाना। हो अर्हन्त जात जन्मोत्सव, बन्दूं श्री भगवाना॥
ॐ ह्रीं अरहज्जाताय नमः अयं ॥२॥ केवल दर्श ज्ञान किरणावलि, मण्डित तिह जग चन्दा। मिथ्या तम हर जल आदिक करि, बन्दूं पद अरबिन्दा॥
ॐ ह्रीं अरहचिद्रूपाय नमः अर्घ्यं ॥३॥ घाति कर्म रिपु जारि छारकर, स्व चतुष्टय पद पायो। निज स्वरूप चिद्रूप गुणातम, हम तिन पद शिर नायो॥
___ ॐ ह्रीं अरहचिद्रूपगुणाय नमः अर्घ्यं ॥४॥ ज्ञानावरणी पटल उघारत, केवल भानु उगायो। भव्यन को प्रतिबोध उघारे, बहुरि मुक्ति पद पायो॥
ॐ ह्रीं अरहज्ज्ञानाय नमः अर्घ्यं ॥५॥ धर्म-अधर्म ढास फल दोनों, देखो जिम कर रेखा। बतलायो परतीत विषय करि, यह गुण जिनमें देखा।
ॐ ह्रीं अरहद्दर्शनाय नमः अयं ॥६॥ . मोह महा दृढ बन्ध उधारो, कर विषतन्तु समाना। अतुल बली अरहन्त कहायो, पाय नमूं शिवथाना॥
ॐ ह्रीं अरहद्वीर्याय नमः अर्घ्यं ७॥