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________________ १०४] श्री सिद्धचक्र विधान सरवोत्तम लौकिक रस, सुधा कुरस सब त्याग। निज पद परमामृत रसिक, नमूं चरण बड़भाग॥ ह्रीं परमामृतरताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥२०१॥ विषयामृत विषसम अरुचि, अरस अशुभ असुहान। जान निजानन्द परमसम, तुष्ट सिद्ध भगवान ॥ ॐ हीं परमामृततुष्टाय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥२०२॥ शङ्कातीत अतीतसो, धरें प्रीति निज मांहि । अमल हिये सन्तनि प्रिये, परम प्रीति नमूं ताहि॥ ॐ ह्रीं परमप्रीताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥२०३॥ . अक्षय आनन्द भाव युत, निज हितकार मनोग। सज्जन चित वल्लभ परन, दुर्जन दुर्लभ योग। ___ॐ ह्रीं परमवल्लभयोगाय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥२०४॥ शब्द गन्धरसफरस नहिं, नहीं वरण आकार। बुद्धि गहै नहिं पार तुम, गुप्त भाव निरधार ॥ ॐ ह्रीं अव्यक्तभावाय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥२०५॥ सर्व दर्वसों भिन्न हैं, नहिं अभिन्न तिहुँ काल। नमूं सदा परकाश धर, एकहिं रूप विशाल॥ ॐ ह्रीं एकत्वस्वरूपाय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥२०६॥ सर्व दर्वतें भिन्नता, जिन गुण निज में वास। नमूं अखण्ड परमातमा, सदा सुगुण की राश॥ ॐ ह्रीं एकत्वगुणाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥२०७॥ सर्व दर्व परिणामसों, मिलैं न निज परिणाम। नमूं निजानन्द ज्योति धन, नित्य उदय अभिराम॥ ॐ ह्रीं एकत्वभावाय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥२०८॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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