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श्री सिद्धचक्र विधान
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चौपाई पर संयोग तथा समवाय, यह सम्वाद न हो द्वै भाय। नित्य अभेद एकता धरो, प्रण द्वैत भाव हम हरो॥
ॐ ह्रीं द्वैतभावविनाशकाय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥२०९॥ पूर्व पर्याय नासियो सोई, जाको फिर उतपात न होई। अव्यय अविनाशी अभिराम, शाश्वत रूप नमूं सुखधाम॥
ॐ ह्रीं शाश्वताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥२१०॥ निर्विकार निर्मल निजभाव, नित्य प्रकाश अमन्द प्रभाव। अव्यय अविनाशी अभिराम, शाश्वत रूप नमूं सुखधाम॥ ____ॐ ह्रीं शाश्वतप्रकाशाय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥२११॥ निरावरण रवि बिम्ब समान, नित्य उद्योत धरो निज ज्ञान। अव्यय.अविनाशी अभिराम, शाश्वत रूप नमूं सुखधाम॥
ॐ ह्रीं शाश्वतोद्योताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥२१२ ॥ ज्ञानानन्द सुधारक चन्द्र, सोहत पूरण ज्योति अमन्द। अव्यय अविनाशी अभिराम, शाश्वत रूप नमूं सुखधाम॥ ___ॐ ह्रीं शाश्वतामृतचन्द्राय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥२१३॥ ज्ञानानन्द सुधारस धार, निरविच्छेद अभेद अपार। अव्यय अविनाशी अभिराम, शाश्वत रूप नमूं सुखधाम॥
ॐ ह्रीं शाश्वतअमृतमूर्तये सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥२१४॥ ..
पद्धड़ी छन्द मन इन्द्रिय ज्ञान न पाय जेह, है सूक्षम नाम सरूप तेह। मनःपर्यय जाकू नहिं पाय, परम सूक्षम-सा सुगुण नमाय॥ ___ॐ ह्रीं परमसूक्ष्माय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥२१५ ॥