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श्री सिद्धचक्र विधान
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साधना जब तई होत है तब तई,
दोऊ परिमाण को काज जामें नहीं। आप निजपद लियो तिन जिलॉजलि दियो,
अन्य नहीं चहत निज शुद्धता में लियो॥ ॐ ह्रीं परिणामविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८॥
तोमर छन्द द्रग ज्ञान पूरणचन्द्र, अकलङ्क ज्योति अमन्द। निरद्वन्द ब्रह्मस्वरूप, नित्त पूजहूँ चिद्रूप॥
ॐ ह्रीं ब्रह्मस्वरूपाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८१॥ सब ज्ञानमयी परिणाम, वर्णादि को नहिं काम।
निरद्वन्द ब्रह्मस्वरूप, नित्त पूजहूँ चिद्रूप॥ ... ॐ ह्रीं ब्रह्मगुणाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८२ ॥
निज चेतना गुण धार, बिन रूप हो अविकार। निरद्वन्द ब्रह्मस्वरूप, नित्त पूजहूँ चिद्रूप॥ . ॐ ह्रीं ब्रह्मचेतनाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८३॥
सुन्दरी छन्द अन्य रूप सों अन्य रहैं सदा, पर निमित्त विभा न हो कदा। कहत हैं मुनि शुद्ध सुभावजी, नमूं सिद्ध सदा तिन पायजी॥
___ ॐ ह्रीं शुद्धस्वभावाय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१८४॥ परपरिणामनसोंनहिंमिलतहैं,निजपरिणामनसोंनहिंचलतहैं। शुद्ध परिणामीतुमपद नमू, नमत तुमपदसबअघकोदमूं॥ ___ॐ ह्रीं शुद्धपरिणामकाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८५॥
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