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श्री सिद्धचक्र विधान
पञ्चकल्याणक चौतिस अतिशय राज ही, प्रातिहार्य अठ समोशरण द्युति छाज ही। तीर्थङ्कर विधि विभव नाश निज पद लहो॥ध्यावत हैं.॥ ॐ ह्रीं तीर्थङ्करप्रकृतिरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१४६ ॥
चाल छन्द जो कुम्भकार की नाई, छिन घट छिन करत सुराई। सो गोत्र कर्म परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥
ॐ ह्रीं गोत्रकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१४७॥ लोकनि में पूज्य प्रधाना, सब करत विनय सनमाना। यह ऊँच गोत्र परजारा, हम पूज रचो. सुखकारा॥ ___ॐ ह्रीं ऊँचगोत्रकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१४८॥ जिसको सब कहत कमीना, आचरण धरे अति हीना। यह नीच गोत्र परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥ ___ॐ ह्रीं नीचगोत्रकर्मविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥१४९॥ ज्यों दे न सके भण्डारी, परधन की हो रखवारी। यह अन्तराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥ __ॐ ह्रीं अन्तरायकर्मविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१५० ॥ दो दान देन को भावा, दे सके न कोटि उपावा। दानान्तराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥
ॐ ह्रीं दानान्तरायरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१५१ ॥ मनो दान लेन के भावे, दातार प्रसंग न पावै। लाभान्तराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥
ॐ ह्रीं लाभान्तरायकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१५२ ॥