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श्री सिद्धचक्र विधान
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पुष्यादिक चाहै भोगा, पर पाये न अवसर योगा। भोगान्तराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥ ___ॐ ह्रीं भोगान्तरायकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥१५३ ॥ तिय आदिक बारम्बारा, नहीं भोग सके हितकारा। उपभोगान्तराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥
ॐ ह्रीं उपभोगान्तरायकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥१५४॥ चेतन निज बल प्रगटावे, यह योग कभू नहीं पावे। वीर्यान्तराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥ ___ॐ ह्रीं वीर्यान्तरायकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१५५॥ ज्ञानावरणादिक नामी, निज भाग उदय परिणामी। अठ भेद कर्म परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥ - ॐ ह्रीं अष्टकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१५६॥ इकसो अड़ताल प्रकारी, उत्तर विधि सत्ता धारी। सब प्रकृति कर्म परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥ . ॐ ह्रीं एकशताष्टचत्वारिंशत्रहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१५७॥ परिणाम भेद संख्याता, जो वचन योग में आता। संख्यात कर्म परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥ ___ॐ ह्रीं संख्यातकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१५८॥ है वचननसों अधिकाई, परिणाम भेद दुःखदाई। विधि असंख्यात परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥ ___ॐ ह्रीं असंख्यातकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१५९॥ अविभाग प्रछेद अनन्ता, जो केवलज्ञान लहन्ता। यह कर्म अनन्त परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥
ॐ ह्रीं अनन्तकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१६० ॥