________________
९४]
श्री सिद्धचक्र विधान
उपेन्द्रवज्रा छन्द चले न जो धातु तज नवासा, यथाविधि आप धरै निवासा। यही प्रकारा थिर नाम भासो, नमामि देवं तिस देह नासो॥ __ॐ ह्रीं स्थिरनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१३३॥ अनेक थानं मुख गौण घातं, चलन्ति धारं निजवास घातं। यही प्रकारा थिर नाम भासो, नमामि देवं तिस देह नासो॥ ___ ॐ ह्रीं अस्थिरनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१३४॥ यथाविधी देह विशाल सोहै, मुखारविन्दादिक सर्व मोहै। यही प्रकारा शुभ नाम भासो, नमामि देवं तिस देह नासो॥ ___ॐ ह्रीं शुभनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१३५॥ . असुन्दराकार शरीर माहीं, लखों जहासों विडरूप ताहीं। यही प्रकारा,अशुभ नाम भासो, नमामि देवं तिस देह नासो॥ ___ॐ ह्रीं अशुभनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१३६॥ अनेक लोकोत्तम भावधारी, करैं सभी तापर प्रीति भारी। यही सुभगता को भेद भासो, नमामि देवं तिस देह नासो॥ ____ॐ ह्रीं सुभगनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१३७ ॥ धरै अनेका गुणती न जासों, करें कभी प्रीति न कोइ तासों। दुर्भाग ताको, यह भेद भासो, नमामि देवं तिस देह नासो॥ ___ॐ ह्रीं दुर्भगनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१३८॥
पद्धड़ि छन्द ... ध्वनिबीन भाँतिग्योंमधुरवैर, निसरैपिकआदिकसुरसदैन। यहसुस्वरनाम प्रकृतिकहाय, तुमहनोंनमूंजिनशीसलाय॥
ॐ हीं सुस्वरनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥१३९ ॥