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श्री सिद्धचक्र विधान
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फर्स विशेष न उष्ण है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमू, ताहि कर्मरज टार॥
ॐ ह्रीं उष्णस्पर्शरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥१११॥ फर्स विशेष न चिकण है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमू, ताहि कर्मरज टार॥
ॐ ह्रीं स्निग्धस्पर्शरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥११२॥ फर्स विशेष न रुक्ष है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमू, ताहि कर्मरज टार॥ ॐ हीं रुक्षस्पर्शरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥११३॥
छन्द मरहठा - हो जो प्रजास वर पणइन्द्रीधर जाय नर्क निरधार, विग्रहसों चाल में अन्तराल में धरै पूर्व आकार। सो नर्क नामकरि गावत सणधर आनुपूर्वी सार, तुम ताहि नशायो शिवगति पायो नमत लहूँ भवपार॥ .. ॐ हीं नरकगत्यानुपूर्वीछेदकाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥११४॥ निज काय छाँड करि अन्त समय मरि होय पशु अवतार। विग्रहसोंचाल में अन्तराल में धरै पूर्व आकार॥सो तिर्यंच.
ॐ ह्रीं तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वीविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥११५॥ हो मिश्र प्रणामी वा शिवगामी वरै मनुष्यगति सार। विग्रहसों चाल में अन्तराल में धरै पूर्व आकार॥सो मनुष्य. - ॐ ही मनुष्यगत्यानुपूर्वीविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥११६ ॥ समकितसों वा कलेश करि धरहि देवगति चार । विग्रहसों चाल में अन्तराल में धरै पूर्व आकार॥ सो देव.
ॐ ह्रीं देवगत्यानुपूर्वीविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥११७॥