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श्री सिद्धचक्र विधान
स्वाद विशेष न आम्ल है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥
ॐ ह्रीं आम्लरसरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१०३॥ स्वाद विशेष न मधुर है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥
ॐ ह्रीं मधुररसरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१०४॥ स्वाद विशेष न कषाय है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥
ॐ ह्रीं कषायरसरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१०५॥ . फर्स विशेष न कर्म है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥ ॐ ह्रीं मृदुत्वस्पर्शरसरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१०६॥ फर्स विशेष न कठिन है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥ ॐ ह्रीं कठिनस्पर्शरसरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१०७॥ फर्स विशेष न भार है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥
ॐ ह्रीं गुरुस्पर्शरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१०८॥ फर्स विशेष न अगुर है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥
ॐ ह्रीं लघुस्पर्शरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१०९॥ फर्स विशेष न शीत है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥ - ॐ ह्रीं शीतस्पर्शरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥११०॥