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श्री सिद्धचक्र विधान
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वर्ण विशेष न पीत है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥
ॐ ह्रीं पीतनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥१५॥ वर्ण विशेष न रक्त है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥
ॐ ह्रीं रक्तनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१६॥ वर्ण विशेष न हरित है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमू, ताहि कर्मरज टार॥ ॐ ह्रीं हरितनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१७॥ वर्ण विशेष न कृष्ण है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमू, ताहि कर्मरज टार॥ ॐ ह्रीं कृष्णनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८॥ गन्ध विशेष न शुभ कहो, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥ ॐ ह्रीं सुगन्धनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१९॥ गन्ध विशेष न अशुभ है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ. स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥ ॐ ह्रीं दुर्गन्धनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१०॥ स्वाद विशेष न तिक्त है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमूं, ताहि कर्मरज टार॥
ॐ ह्रीं तिक्तरसरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१०१॥ स्वाद विशेष न कटुक है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमू, ताहि कर्मरज टार॥ ॐ ह्रीं कटुकरसरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१०२॥