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श्री सिद्धचक्र विधान
___ छन्द रोला तन अकृति संस्थान आदि, समचतुरस्त्र बखानो। ऊपर तले समान, यथाविधि सुन्दर जानो॥ यह विपरीत स्वरूप त्याग, पायो निजात्म पद। बीजभूत कल्याण नमू, भव्यनि प्रति सुखप्रद॥
ॐ ह्रीं समचतुरस्रसंस्थानविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥७९॥ ऊपर से हो थूल तले हो, न्यून देह जिस। परिमण्डलनिग्रोध नाम, वरणो सिद्धान्त तिस॥ यह.॥
ॐ हीं न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थानरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥८० ॥ नीचे से हो थूल न्यून होवे उपराहीं। बंमइ सम वाल्मीकि देह जिन आज्ञा माहीं। यह.॥ ____ ॐ ह्रीं वाल्मीकसंस्थानरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥८१॥ जो कूबड़ आकार रूप पावे तन प्राणी। कुब्ज नाम संस्थान ताहि वरणों जिनवाणी॥ यह.॥ ___ ॐ ह्रीं कुब्जकनामसंस्थानरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥८२ ॥ लघुसों ठिगना रूप एम तन होवे जाको। वामन है परसिद्ध लोक में कहिवे ताको॥ यह.॥
ॐ ह्रीं वामनसंस्थानरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥८३ ॥ जिततित बहु आकार कहीं नहिं हो यक सारूँ। हुंडक अति असुहावन पाप फल प्रगट उधारूँ॥ यह.॥
ॐ हीं हुण्डकसंस्थानरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥८४॥