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-(सिद्ध चालक
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डललियान -
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कर्पूरवर्तिबहुमिः कनकावदातै ।दीपैर्यजे रुचिवरैरसिद्धचक्रम् ॥ ६ ॥ दीपम् पश्यन् समस्तभुवनं युगपनितान्तम् । त्रैकाल्यवस्तुविपये निविडप्रदीपम् ॥ सद्व्यगंधधनसारविमिश्रितानां । धूपैर्यजे परिमलैर्वरसिद्धचक्रम् ॥ ७ ॥ धूपम् सिद्धामुराधिपतियक्षनरेन्द्रचनै ।ध्येयं शिवं सकलभव्यजनैश्च वन्द्यम् ।। नारंगपूगकदलीफलमातुलिंग'। सोऽहं यजे वरफलैर्वरसिद्धचक्रम् ॥ ८॥ फलम् गंधाढ्यं सुपयोमधुव्रतगणैः संगं वरं चन्दनम् । पुष्पौघं विमलं सदक्षतचयं रम्यं चरुं दीपकम् ॥
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१-कहीं . "नारिकेले." ऐसा भी पाठ है। ,
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