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________________ ७८ श्रमण महावीर महावीर हैं। क्या तुम और परिचय पाना चाहते हो ?' परिव्राजिका-युगल ने कहा। प्रहरी अवाक् रह गए। उन्हें अपने कृत्य पर अनुताप हुआ। वे वोले, 'पूज्य परिव्राजिकाओ ! हम आपके बहुत-बहुत आभारी हैं । आपने हमें धर्म-संकट से उबार लिया है। हम अब और परिचय नहीं चाहते। हम इस तरुण तपस्वी से क्षमा चाहते हैं। इस कार्य में आप हमारा सहयोग कीजिए।' वे प्रायश्चित्त की मुद्रा में भगवान के चरणों में झुक गए। भगवान् की सौम्य-स्निग्ध दृष्टि और मुखमण्डल से टपक रही प्रसन्नता ने उनका भार हर लिया। "भंते ! हमारे प्रहरियों ने आपका अविनय किया है, पर श्रमण-परम्परा के महान् साधक अबोध व्यक्तियों के अज्ञान को क्षमा करते आए हैं । हमें विश्वास है, आप भी उन्हें क्षमा कर देंगे। भंते ! हमारा छोटा-सा परिचय यह है, हम दोनों नैमित्तिक उत्पल की बहनें हैं।' परिचय के प्रसंग में वे अपना परिचय देकर, जिस दिशा से आई थीं, उसी दिशा की ओर चली गईं। भगवान् अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़ गए। ५. मेघ और कालहस्ती दोनों भाई थे। कलंबुका उनके अधिकार में था। ये सीमान्तवासी थे। एक बार कालहस्ती कुछ चोरों को साथ ले चोरी करने जा रहा था। भगवान् चोराक सन्निवेश से प्रस्थान कर कलंबुका की ओर जा रहे थे। गोशालक उनके साथ था। कालहस्ती ने भगवान् का परिचय पूछा। भगवान् नहीं बोले। उसने फिर पूछा, भगवान् फिर मौन रहे । गोशालक भी मौन रहा। कालहस्ती उत्तेजित हो उठा। उसने अपने साथियों से कहा, 'इन्हें वांधकर कलंबुका ले जाओ और मेघ के सामने उपस्थित कर दो।' ___ मेघ अपने वासकक्ष में बैठा था। उसके सेवक दोनों तपस्वियों को साथ लिये वहां पहुंचे। उसने भगवान् को पहचान लिया और मुक्त कर दिया। भगवान को बंदी बनाने का जो सिलसिला चला उसके पीछे सामयिक परिस्थितियों का एक चक्र है। उस समय छोटे-छोटे राज्य थे। वे एक-दूसरे को अपने अधिकार में लेने के लिए लालायित रहते थे। गुप्तचर विभिन्न वेशों में इधर-उधर घूमते थे। इसीलिए हर राज्य के आरक्षिक बहुत सतर्क रहते । वे किसी भी अपरिचित व्यक्ति को अपने राज्य की सीमा में नहीं घुसने देते। ६. कूपिय सन्निवेश के आरक्षिकों ने भगवान् को गुप्तचर समझकर बंदी १. आवश्यकचूणि, पूर्वभाग, पृ० २८६-२८७ । २. साधना का पांचवां वर्ष । स्थान-कलंयुका सन्निवेश । आवश्यकचूणि, पूर्वभाग, पृ० २६०।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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