SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहीं वंदना और कहीं बंदी ७७ महावीर उस उद्यान में ध्यान कर रहे थे। एक दिव्य आत्मा ने देखा। वह बोल उठी-'कितना आश्चर्य है कि वग्गुर दंपति साक्षात् भगवान् को छोड़ मूर्ति को पूजने जा रहा है !' वग्गुर दंपति को अपनी भूल पर अनुताप हुआ। उसकी दिशा बदल गई। वह भगवान् की आराधना में तल्लीन हो गया।' ३. भगवान् सिद्धार्थपुर से प्रस्थान कर वैशाली पहुंचे। वे नगर के बाहर कायोत्सर्ग की मुद्रा में खड़े थे। उनकी दृष्टि एक वस्तु पर टिकी हुई थी, स्थिर और अनिमेष । बच्चों ने उन्हें देखा । वे डर गए । वे इधर-उधर घूमकर भगवान् को सताने लगे। उस समय राजा शंख वहां पहुंच गया। वह महाराज सिद्धार्थ का मित्र था । वह भगवान् को पहचानता था। उसने भगवान् को उस विघ्न से मुक्त किया । वह भगवान् को वंदना कर अपने आवास की ओर चला गया।' ४. भगवान् कुमाराक सन्निवेश से चोराक सन्निवेश पहुंचे। वहां चोरों का बड़ा आतंक था। उसके प्रहरी बड़े सतर्क थे। उनकी आंखों से बचकर कोई भी आदमी सन्निवेश में नहीं पहुंच पाता था । प्रहरियों ने भगवान् को देखा और परिचय पूछा। भगवान् मौन रहे। प्रहरी क्रुद्ध हो गए। उस समय गोशालक भगवान् के साथ था। वह भी मौन रहा। प्रहरी और बिगड़ गए। वे दोनों को सताने लगे। एक ओर मौन और दूसरी ओर उत्पीड़न-~दोनों लम्बे समय तक चले। सन्निवेश के लोगों ने यह देखा। वात आगे से आगे फैलती गई। उस सन्निवेश में दो परिवाजिकाएं रहती थीं। एक का नाम था सोमा और दूसरी का नाम था जयंती। वे भगवान् पार्श्व की परम्परा में साध्वियां बनी थीं। वे साधुत्व की साधना में असमर्थ होकर परिवाजिकाएं वन गई थीं। उन्होंने सुना कि माज सन्निवेश के प्रहरी दो तपस्वियों को सता रहे हैं। प्रहरी उनसे परिचय मांग रहे हैं और वे अपना परिचय नहीं दे रहे हैं। यही उनके सताने का हेतु है । परिवाजिकाओं ने सोचा-'ये तपस्वी कोन हैं ? भगवान महावीर इसी क्षेत्र में विहार कर रहे हैं । वे साधना में तन्मय होने के कारण बहुत कम वोलते हैं । कहीं वे ही तो नहीं हैं ?' ___ दोनों परिवाजिकाएं घटनास्थल पर आई। उन्होंने देखा, भगवान् महावीर मौन और शान्त खड़े हैं, प्रहरी अशान्त और उद्विग्न । प्रहरी अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं और भगवान् मौन का प्रायश्चित्त । "प्रिय प्रहरियो ! यह चोर नहीं हैं। यह महाराज सिद्वार्थ के पुत्र भगवान् १ आवश्यकचूणि, पूर्वभाग, प० २६४-२६५ । २. साधना का दसवां वर्ष। ३. आपारो, ६।१।५; आवश्यकणि , पूर्वभाग, पृ० २६६ । ४. साधना का चौथा वर्ष ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy