________________
कहीं वंदना और कहीं बंदी
विश्व के हर अंचल में विविधता का साम्राज्य है। एक-रूप कौन है और एकरूपता कहां है ? जीवन की धारा अनगिन घाटियों और गढों को पार कर प्रवाहित हो रही है। केवल समतल पर अंकित होने वाले चरण-चिह्न कहीं भी अस्तित्व में नहीं हैं।
१. भगवान् उत्तर वाचाला से प्रस्थान कर श्वेतव्या पहुंचे। राजा प्रदेशी ने भगवान् की उपासना की। भगवान् की दृष्टि में राजा की उपासना से अपनी उपासना का मूल्य अधिक था। इसलिए वे पूजा में लिप्त नहीं हुए। वे श्वेतव्या से विहार कर सुरभिपुर की ओर आगे बढ़ गए। मार्ग में पांच नै यक राजा मिले। वे राजा प्रदेशी के पास जा रहे थे। उन्होंने भगवान को आते देखा। वे अपनेअपने रथ से नीचे उतरे । भगवान् को वंदना कर आगे चले गए।
२. भगवान् एक बार पुरिमताल नगर में गए। वहां वग्गुर नाम का श्रेष्ठी रहता था। उसकी पत्नी का नाम था भद्रा । वह पुत्र के लिए अनेक देवी-देवताओं की मनौती कर रही थी। फिर भी उसे पुत्र-लाभ नहीं हुआ। एक बार वग्गुर दंपति उद्यान में क्रीडा करने गया। वहां उसने अर्हत मल्ली का जीर्ण-शीर्ण मंदिर देखा। श्रेष्ठी ने संकल्प किया-'यदि मेरे घर पुत्र उत्पन्न हो जाये तो मैं इस मंदिर का नव-निर्माण करा दूंगा।' संयोग की बात है, पुत्र का जन्म हो गया। श्रेष्ठी ने मंदिर का पुनरुद्धार करा दिया।
एक दिन वग्गुर दंपति पूजा करने मंदिर में जा रहा था। उस समय भगवान्
१. साधना का दूसरा वर्ष । २. आवश्यकचूणि, पूर्वभाग, पृ० २७६-२८० । i. साधना का आठवां वर्ष ।