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प्रगति के संकेत
सिद्धान्तों के व्यापक होने का सूचक है।
१०. मेरु पर्वत पर उपस्थिति का स्वप्न धर्म की उच्चतम प्रस्थापना करने का सूचक है।'
भगवान् ने कहा-'उत्पल ! तुम्हारा निमित्त-ज्ञान बहुत विकसित है। तुमने जो स्वप्नार्थ बताए हैं, वे सही हैं। मेरा चौथा (रत्न की दो मालाओं का) स्वप्न साधु-धर्म और गृहस्थ-धर्म इस द्विविध धर्म की स्थापना का सूचक है।"
२. भगवान् गंडकी नदी को नौका से पार कर वाणिज्यग्राम आए। उसके वाह्य भाग में एक रमणीय और एकान्त प्रदेश था। भगवान् वहां स्थित होकर ध्यानलीन हो गए। उस गांव में आनन्द नामक गृहस्थ रहता था। वह भगवान् पार्श्व की परम्परा का अनुयायी था। वह दो-दो उपवास की तपस्या और सूर्य के आतप का आसेवन कर रहा था। उसे इस प्रक्रिया से अतीन्द्रिय-ज्ञान (अवधिज्ञान) उपलब्ध हो गया।
वाणिज्यग्राम के बाह्य भाग में भगवान् की उपस्थिति का बोध होने पर वह वहां आया। भगवान् के चरणों में प्रणिपात कर बोला, 'भंते ! अनुत्तर है आप की कायगुप्ति, अनुत्तर है आपकी वचनगुप्ति और अनुत्तर है आपकी मनोगुप्ति । भंते ! मुझे स्पष्ट दीख रहा है कि आपको कुछ वर्षों के बाद कैवल्य प्राप्त होगा। __ भगवान् कैवल्य की दिशा में आगे बढ़ रहे थे। उसके संकेत वातावरण में तैरने लग गए।
१. आवश्यकचूणि, पूर्वभाग, पृ० २७३-२७५ । २. साधना का दसवां वर्ष ।