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________________ ६६ श्रमण महावीर स्थिति को जान लेने पर भी वह वहां ठहरा है तो अवश्य ही कोई महासत्त्व व्यक्ति है ।' विचार की गहराई में डुबकी लगाते-लगाते उसके मन में एक विकल्प उत्पन्न हुआ, 'मैंने सुना है कि भगवान् महावीर इसी वर्ष दीक्षित हुए हैं । वे बहुत ही पराक्रमी हैं । कहीं वे ही तो नहीं आए हैं ?' काफी रात जाने तक लोग बातें करते रहे । वे सोए तब भी उनके दिल में करुणा जागृत थी । प्रातःकाल लोग जल्दी उठे । उषा होते-होते वे मंदिर में आ पहुंचे। कुछ लोग भगवान् को देखने का कुतूहल लिये आए और कुछ लोग अन्त्येष्टि - संस्कार सम्पन्न करने के लिए। वे सब मंदिर के दरवाज़े में घुसे । वे यह देख आश्चर्य में डूब गए कि भिक्षु अभी जीवित है | उन्हें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ । वे कुछ और आगे बढ़े, फिर ध्यान से देखा । उन्हें अपनी धारणा से प्रतिकूल यही देखने को मिला कि भिक्षु अभी अच्छी तरह से जीवित है । वे हर्ष-विभोर हो आकाश में उछले । सबने उच्च स्वर से तीन बार कहा, 'शान्तं पापं शान्तं पापं शान्तं पापं । भिक्षु ! तुम्हारी कृपा से हमारे गांव का उपद्रव मिट गया । भय समाप्त हो गया। अब यहां कोई भय नहीं रहा ।' 1 उत्पल आगे आया। उसने भगवान् के शरीर को देखा, फिर रात की घटना को देखा । वह निमित्त - बल से सारी स्थिति जान गया । वह बोला- 'भन्ते ! आज रात को आपने कुछ नींद ली है ? ' 'हां, उत्पल ।' 'उसमें आपने कुछ स्वप्न देखे हैं ? ' 'तुम सही हो ।' 'भंते ! आप बहुत बड़े ज्ञानी हैं। उनका फलादेश जानते ही हैं । फिर भी मैं अपनी उत्कंठा की पूर्ति के लिए कुछ कहना चाहता हूं ।' उत्पल कुछ ध्यानस्थ हुआ। वह अपने मन को निमित्त-विद्या में एकाग्र कर बोला- 'भंते ! १. ताल पिशाच को पराजित करने का स्वप्न मोह के क्षीण होने का सूचक है। २. श्वेत पंखवाले पुंस्कोकिल का स्वप्न शुक्लध्यान के विकास का सूचक है । ३. विचित्र पंखवाले पुंस्कोकिल का स्वप्न अनेकान्त दर्शन के प्रतिपादन का सूचक है । ४. भंते ! चौये स्वप्न का फल में नहीं समझ पा रहा हूं । ५. श्वेत गौवर्ग का स्वप्न संघ की समृद्धि का सूचक है । ६. कुसुमित पद्म सरोवर का स्वप्न दिव्यशक्ति की उपस्थिति का सूचक है । ७. समुद्र तैरने का स्वप्न संसार- सिन्धु के पार पाने का सूचक है । ८. सूर्य का स्वप्न कैवल्य की प्राप्ति होने का सूचक है । पर्वतको आंतों से वेष्टित करने का स्वप्न आपके द्वारा प्रतिपादित. 3.
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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