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प्रगति के संकेत
__ भगवान महावीर अभी अकेले ही विहार कर रहे थे। उनका न कोई सहायक है और न कोई शिष्य । उन जैसे समर्थ व्यक्ति को शिष्य' का उपलब्ध होना कोई बड़ी वात नहीं थी। पर वे स्वतन्त्रता की अनुभूति किए बिना उसका बंधन अपने पर डालना नहीं चाहते थे।
१. भगवान् पार्श्व की शिष्य-परम्परा अभी चल रही है। उसमें कुछ साधु वहुत योग्य हैं, कुछ साधना में शिथिल हो चुके हैं और कुछ साधुत्व की दीक्षा छोड़ परिव्राजक या गृहवासी बन चुके हैं। ___उत्पल पार्श्व की परम्परा में दीक्षित हुआ। उसने दीक्षाकाल में अनेक विद्याएं अर्जित की। वह दीक्षा को छोड़ परिव्राजक हो गया। वह अस्थिकग्राम में रह रहा है । अष्टांग निमित्त विद्या पर उसका पूर्ण अधिकार है।
भगवान् महावीर शूलपाणि यक्ष के मंदिर में उपस्थित हैं। समूचे अस्थिकग्राम में यह चर्चा हो रही है कि एक भिक्षु अपने गांव में आया है और वह शूलपाणि यक्ष के मंदिर में ठहरा है । लोग परस्पर कहने लगे, 'यह अच्छा नहीं हुआ। वेचारा मारा जाएगा। क्या पुजारी ने उसे मनाही नहीं की? क्या किसी आदमी ने उसे बताया नहीं कि उस स्थान में रात को रहने का अर्थ मौत को बुलावा है । अब क्या हो, रात ढल चुकी है। इस समय वहां कौन जाए ?' पुजारी और उसके साथियों ने लोगों को बताया कि हमने सारी स्थिति उसे समझा दी थी। वह कोई बहुत ही आग्रही भिक्षु है । हमारे समझाने पर भी उसने वहीं रहने का आग्रह किया। इसका हम क्या करें? यह बात उत्पल तक पहुंनी। उसने सोचा, 'कोई साधारण व्यक्ति भयंकर स्थान में रात को ठहर नहीं सकता।
१. साधना का पहला वर्ष । स्थान-अस्थिक नाम ।