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करुणा का अजस्र स्रोत
वर्षा ने विदा ले ली। शरद् का प्रवेश-द्वार खुल गया। हरियाली का विस्तार कम हो गया। पथ प्रशस्त हो गए । भगवान् महावीर अस्थिकग्राम से प्रस्थान कर मोराक सन्निवेश पहुंचे। बाहर के उद्यान में ठहरे।
उस सन्निवेश में अच्छदंक नामक तपस्वी रहते थे । वे ज्योतिष, वशीकरण, मंत्र-तंत्र आदि विद्याओं में कुशल थे। एक अच्छंदक की वहां बहुत प्रसिद्धि थी। जनता उसके चमत्कारों से बहुत प्रभावित थी।
उद्यानपालक ने देखा कोई तपस्वी ध्यान किए खड़ा है। उसने दूसरे दिन फिर देखा कि तपस्वी वैसे ही खड़ा है। उसके मन में श्रद्धा जाग गई। उसने सन्निवेश के लोगों को सूचना दी। लोग आने लगे। भगवान् ने ध्यान और मौन का क्रम नहीं तोड़ा। फिर भी लोग आते और कुछ समय उपासना कर चले जाते । वे भगवान् की ध्यान-मुद्रा पर मुग्ध हो गए । भगवान् की सन्निधि उनके शान्ति का स्रोत वन गई।
सन्निवेश की जनता का झुकाव भगवान् की ओर देख अच्छंदक विचलित हो उठा। उसने भगवान् को पराजित करने का उपाय सोचा। वह अपने समर्थकों को साथ ले भगवान के सामने उपस्थित हो गया। ___ भगवान् आत्म-दर्शन की उस गहराई में निमग्न थे जहां जय-पराजय का अस्तित्व ही नहीं है। अच्छंदक तपस्वी का मन जय-पराजय के झूले में झूल रहा था। वह बोला, 'तरुण तपस्वी ! मौन क्यों खड़े हो ? यदि तुम ज्ञानी हो तो मेरे प्रश्न का उत्तर दो । मेरे हाथ में यह तिनका है। यह अभी टूटेगा या नहीं टूटेगा?' इतना कहने पर भी भगवान् का ध्यान 'मंग नहीं हुआ।
१. माधना का दूसरा वर्ष।