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________________ १२ बिम्ब और प्रतिबिम्ब एक राजा ने पांच धर्माचार्यों को आमंत्रित कर कहा, 'मैं गुरु बनाना चाहता हूं। पर मेरा गुरु वह होगा जिसका आश्रम सबसे बड़ा है।' राजा आश्रम देखने निकला । एक आश्रम पांच एकड़ में फैला था, दूसरा दस एकड़ में, तीसरा वीस एकड़ में और चौथा चालीस एकड़ में। राजा ने चारों आश्रम देख लिये । एक आश्रम बाकी रहा । बूढ़ा धर्म-गुरु राजा को नगर से बाहर एक पेड़ के नीचे ले गया। राजा के पूछने पर बताया 'मेरा आश्रम यही है।' 'इसकी सीमा कहां तक है, महाराज ?' 'जहां तक तुम्हारी दृष्टि पहुंचती है और जहां नहीं भी पहुंचती है, वहां तक ।' उसका आश्रम सबसे बड़ा था। वह राजा का गुरु हो गया। भगवान् साधना के लिए कहीं आश्रम बांधकर नहीं बैठे। वे स्वतंत्रता के लिए निकले, निरंतर परिव्रजन करते रहे । भूमि और आकाश-दोनों पर उनका अबाध अधिकार हो गया। वे बाह्य जगत् में भूमि का स्पर्श कर रहे थे और अन्तर् जगत् में अपनी आत्मा का। वे बाह्य जगत् में लोक-मान्यताओं का आकलन कर रहे थे और अन्तर् जगत् में सार्वभौम सत्यों का। उस समय लोग शकुन में बहुत विश्वास करते थे। जो लोग सामाजिक अपराध करने के लिए जाते, वे भी शकुन देखते थे। चोर और डाकू अपशकुन होने पर न चोरी करते और न डाका डालते। १. पूर्णकलश गढ़ देश का सीमान्तवर्ती गांव है। भगवान् वहां से प्रस्थान
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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