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________________ विम्व और प्रतिबिम्ब ६३ कर मगध में आ रहे थे ।' दो चोर उन्हें मार्ग में मिले । वे आदिवासी क्षेत्रों में चोरी करने को जा रहे थे । भगवान् को देख वे क्रुद्ध हो गए । वे भगवान् के पास आए। उन्होंने भगवान् को गालियां देकर क्रोध को थोड़ा शान्त किया । फिर वोले, 'नग्न और मुंड श्रमण ! आज तुमने हमारा मनोरथ निष्फल कर दिया ।' 'मैंने क्या निष्फल किया ?" 'हम चोरी करने जा रहे थे, तुमने सामने आकर अपशकुन कर दिया ।' 'चोरी करना कौन-सा अच्छा काम है, जिसके लिए शकुन देखना पड़े ।' 'चोरी अच्छा काम नहीं है, चोरी अच्छा काम नहीं है' - इसकी पुनरावृत्ति में दोनों भान भूल गए । भगवान् अन्धविश्वास के प्रहार से मुक्त होकर आगे बढ़ गए । ' २. भगवान् को वैशाली में भी अंधविश्वास का शिकार होना पड़ा। वे लुहार के कारखाने में ध्यान कर खड़े थे । लुहार छह महीनों से बीमार था । वह स्वस्थ हुआ । अपने यंत्रों को लेकर वह काम करने के लिए कारखाने में आया । उसने देखा, कोई नंगा भिक्षु कारखाने में खड़ा है। अपशकुन का विचार विजली की भांति उसके दिमाग में कौंध गया । वह क्रुद्ध होकर अपने कर्मचारियों पर बरस पड़ा । 'इस नग्न भिक्षु को यहां ठहरने की अनुमति किसने दी ? ' 'हम सबने । ' 'यह मुझे पसन्द नहीं है । ' 'हमें पसन्द है ।' 'इसे निकाल दो ।' 'हम नहीं निकालेंगे ।' 'तुम निकाल दिए जाओगे ।' 'यह हो सकता है ।' वहां का सामूहिक वातावरण देख लुहार मौन हो गया । वह कुछ आगे बढ़ा । भगवान् के जैसे-जैसे निकट गया, वैसे-वैसे उसका मानस आंदोलित हुआ और वह सदा के लिए शान्त हो गया। ● भगवान् ने अपने तीर्थकर काल में अंधविश्वास के उन्मूलन का तीव्र प्रयत्न किया । क्या वह इन्हीं अंधविश्वासपूर्ण घटनाओं की प्रतिक्रिया नहीं है ? १. साधना का पांचवां वर्ष । २. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २६० ३. साधना का छठा वर्ष । ४. आवश्यकचूणि, पूर्वभाग, पृ०२९२ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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