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________________ पान की व्या रचना माची यामी आत्म-जागृति बोर कभी माद आम-जाति की अदम्या में _नमः । जागगि, नना और पति की अवमा को दे दीक्षित की पार मारो । प्रल मे पूछा-'गावीर ने मां बारा वर्षों में कुल मिलाकर अतालिम गिट नीट नी, यह माना जाता: । क्या यह नही है ?' ___" भगवान के पास नहीं था। मैं गमक कि यह मही। बोर में पान में नही पा, मिलिए याद भी गाने गाई किया ही नही है।" 'मानव घाने प्रत्यक्ष देनमार ही कही जाती है ?' 'नहीं, ऐना कोई नियम नी ।' 'सब फिर मेरे प्रश्न गे लिए ही यह न गयों ? मया हमे जानने का कोई माधार नहीं ? 'मी कयों ? आगारांगनब ना बात प्रामाणिक आधार ।' 'मा जामे निया: कि भगवान में ये वन अतानिग मिनट नोदनी ?' 'माही, उनमें मानती!' 'तो फिर गया?' 'उगमें बताया-गान प्रमाम मीर नही दिने काम नही हो । रिक गमय मात्मा को जागत नागने में।" नयागेर धारण के लिए नीद मना उरली नाही?' जीलिए भगवान शिव जागरण के बाद राजभर नीद लो।" 'कानीमही मलानी ?' सीम और मंत्र के दिनों में भी भी नीद माने ना डाली। HIT Tीदने ल गा दिया, मद भगवान ने मानीदली, मीरजामेरामाने , पापनापिता और FIRन नार विद्वानीशी गाना S tate ira पाते?' ___ और निको हो नाया। पानी' auीमा:
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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