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________________ ध्यान की व्यूह-रचना महावीर का चक्रवर्तित्व प्रस्थापित होता जा रहा है। उनका स्वतंत्रता का अभियान प्रतिदिन गतिशील हो रहा है। चक्रवर्ती दूसरों को पराजित कर स्वयं विजयी होता है, दूसरों को परतंत्र कर स्वयं स्वतंत्र होता है । धर्म का चक्रवर्ती ऐसा नहीं करता। उसकी विजय दूसरों की पराजय पर और उसकी स्वतंत्रता दूसरों की परतंत्रता पर निर्भर नहीं होती। महावीर विजय प्राप्त कर रहे हैं किसी व्यक्ति पर नहीं, किन्तु नींद पर, भूख पर, और शरीर की चंचलता पर । महावीर विजय प्राप्त कर रहे हैं-किसी व्यक्ति पर नहीं, किन्तु अहं पर, ममत्व पर और मन की चंचलता पर । निद्रा-विजय नींद जीवन का अनिवार्य अंग है। महावीर को शरीर-शास्त्रीय नियम के अनुसार छह घंटा नींद लेनी चाहिए । पर वे इस नियम का अतिक्रमण कर रहे हैं। वे महीनों तक निरंतर जागते रहते हैं। उनके सामने एक ही कार्य है-ध्यान, ध्यान और निरंतर ध्यान । ____ जागृति की अवस्था में मनुष्य बाहर से जागृत और भीतर से सुप्त रहता है । तन्द्रा की अवस्था में मनुष्य न पूर्णतः जागृत रहता है और न पूर्णतः सुप्त ही। सुषुप्ति में मनुष्य बाहर से भी सुप्त रहता है और भीतर से भी। आत्म-जागृति (तू) में मनुष्य बाहर से सुप्त और भीतर में जागृत रहता है । इस अवस्था में वह स्वप्न या संस्कारों का दर्शन करता है। गाढ़ आत्म-जागृति में मनुष्य वाहर से सुप्त और भीतर से जागृत रहता है। इस अवस्था में चित्त शांत और संकल्प-विकल्प से विहीन हो जाता है ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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