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________________ ४८ : श्रमण महावीर वे नींद पर विजय पा लेते थे। भगवान् बहुत कम खाते थे। कायोत्सर्ग बहुत करते थे । इसलिए उन्हें सहज ही नींद कम आती थी। सहज समाधि में प्राप्त तृप्ति नींद की आवश्यकता को बहुत ही कम कर देती थी इसलिए पूर्ति की अपेक्षा ही नहीं रहती।' 'भगवान् के स्वप्न-दर्शन की कोई घटना ज्ञात नहीं है ?' 'नहीं, क्यों?' 'तो मैं जानना चाहता हूं।' 'भगवान् महावीर शूलपाणि यक्ष के चैत्य में ध्यान कर रहे थे। रात के पिछले पहर में (सूर्योदय में मुहूर्त भर बाकी था, उस समय) भगवान् को नींद आ गयी । उसमें उन्होंने दस स्वप्न देखे १. ताल पिशाच पराजित हो गया है। २. श्वेत पंखवाला वड़ा पुस्कोकिल । ३. चिन-विचित्र पंखवाला पुंस्कोकिल । ४. रत्नमय दो मालाएं। ५. श्वेत गोवर्ग। ६. कुसुमित पद्मसरोवर। ७. कल्लोलित समुद्र भुजाओं से तीर्ण हो गया है। ८. तेज से प्रज्वलित सूर्य । ९. मानुपोत्तर पर्वत अपनी आंतों से आवेष्टित हो गया है। १०. मेरु पर्वत की चूलिका के सिंहासन पर अपनी उपस्थिति । -ये स्वप्न देखकर भगवान् प्रतिवुद्ध हो गए। 'संस्कार-दर्शन की घटनाएं क्या ज्ञात हैं ?' 'ये अनेक बार घटित हुई हैं। शूलपाणि यक्ष की घटना तुम सुन चुके हो । फाटपूतना व्यन्तरी और संगम देव की घटना क्या संस्कार-दर्शन की घटना नहीं हैं ?' ___ माधना का पांचवां वर्ष चालू है। भगवान् ग्रामाक सन्निवेश से शालीशीप आ रहे हैं। उसके बाहर एक उद्यान है। भगवान् उसमें आकर ध्यानस्थ हो गए हैं । माघ का महीना है। भयंकर सर्दी पड़ रही है। ठंडी हवा चल रही है । आकाश महामे से भरा हुआ है। सारा वातावरण कांप रहा है। हर प्राणी ऊष्मा और ताप की गोज में है। भगवान का शरीर विवस्त्र है। वे मात्मबल और योगबल से उस सर्दी म १. मनाता वां । स्थान परियाग्राम (पूर्वनाम यद्धमान ग्राम)। मागि, माग, १० २७४ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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