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________________ आदिवामियों के बीच है। यदि आदमी होना नो जमर गुस्से में आ जाता।" एर बार भगवान् पयंत की तलहटी में ध्यान कर रहे थे। वे पमानन जगामार चंठे धे । युछ लोग जंगल में काम करने के लिए जा रहे थे। उन्होंने भगवान् गोठे हुए देखा। ये उन मुद्रा में बंटे आदमी को पहली बार देख रहे थे। पहलवण हो गए। घंटा भर न रहे । भगवान् तनिक भी इधर-उधर नहीं बोले । ये अनमंजग में पर गाए। यह फोन है, कोई आदमी है या और कुछ ? एक बारमी आगे यहा। उसने जाकर धयका दिया। भगवान् नुमा गाए । भगवान् फिर परमामन नगा ध्यान में रिघर हो गए। वे प्रकृति के बादमी थे। भगवान् की प्रमाला मुद्रा देव उनमा मातभाव जागृत हो गया। वे भगवान् के निकट आए, पंग में प्रणत होकर बोले, 'हमने आपको कष्ट दिया है। आप हमें क्षमा करना। "गया भगवान् आदिवासी लोगों में बातचीत करते थे ?' मैंने पूछा। देवधिगणी ने पाहा, "भगवान् बात चीत करने में रस नहीं लेते थे। उनका म मय विषयों से सिमटकर फेवल सत्य की पोज में ही येन्द्रित हो रहा था। अपरिमित चेहरा देखकर गुछ लोग भगवान के पास मापार बैठ जाते। वे पूछने'तुम होन हो ?' भिक्षु ।' "हां में आए हो ?' 'पंगाली मे यहां आया । 'यहां किमलिए आए हो?' कानयाम ग.लिए। एकाको प्रश्न गा उगार दे भगवान् फिर मौन हो जाते। लोग आपनयंपूर्ण टिउन देणते गाते। गुट दूसरे लोग घने जाने। वं मल की भाषा में कामोर जानन लोगों की कमी जोड़ी मिली !' जादिनानियों पं. अधिक रकार पर भगवान् पया मोगा । या पाया पं। पं जानते कि मनुष्य की पत्तियों का परिकार दिला पर प्रिय, frre और उहाल प्यार करता। इसलिए गिनी लोहार पर जन शो नहीं ।' ___सामान मानमोर थे। उन्होंने पनी नियों को मंत्री जी भारता Informat गानुपातील देशों । इसी दरिट नाम ५सार में लिपिक नही होती ही दिवानीलामो
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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